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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...


इच्छा तथा जिज्ञासा जीवन के लक्षण हैं। जिसमें इच्छा का प्रस्फुटन होता है, जिज्ञासा एवं उत्सुकता का जन्म होता रहता है, नित्य नए कदम बढ़ाने, तरक्की करने की उत्सुकता और नित्य नई बातें सीखने ज्ञान एवं योग्यताएँ प्राप्त करने की जिज्ञासा जाग्रत होती रहती है, वह ही यथार्थ रूप में जीवित हैं। एक स्थान पर पड़े रहना, एक स्थिति में स्थिर रहना, एक ही दशा को स्वीकार किए रहना जड़ता का चिन्ह है। पत्थर, पहाड़ आदि जड़ वस्तुएँ हैं। यह जहाँ जिस स्थिति में पड़ जाती हैं, पड़ी रहती हैं। इनमें जीवन तत्त्व का सर्वथा अभाव होता है। पेड़, पौधे आदि यों चेतन की तुलना में जड ही माने जाते हैं। पर उनमें जीवन तत्व का अभाव नहीं होता। यद्यपि वे एक स्थान से उठकर दूसरे स्थान पर स्वयं नहीं जा सकते तब भी दिन-दिन बढते और विकास करते रहते हैं। नए-नए फूल-फल उगाते रहते हैं। पशु यद्यपि चेतन श्रेणी में माने गए हैं तथापि वे मानसिक रूप से जड़ ही होते हैं। नैसर्गिक इच्छाओं की प्रेरणा के अतिरिक्त उनमें और किसी प्रकार की इच्छा का स्फुरण नहीं होता। नई कल्पनाएँ, नए विचार अथवा नूतन जीवन का उनसे कोई परिचय नहीं होता। वे जिस स्थिति में आदिकाल में थे, आज भी उस स्थिति में ही रह रहे हैं।

अपनी पूर्व स्थिति में यथा स्थान पड़े रहने वाले व्यक्ति एक प्रकार से ऐसी मानसिक जड़ता से आक्रांत रहते हैं। जो काम, जिस श्रेणी में उन्होंने प्रारंभ किया, उसी प्रकार उसी स्थिति में करते हैं। उसे विकसित करने, आगे बढाने अथवा उसमें कोई अवांछनीय परिवर्तन लाने की जिज्ञासा उनमें होती ही नहीं। वे प्रातःकाल उठे, यंत्रवत् अपने आवश्यक नित्य-कर्म निपटाए और बिना किसी उल्लास अथवा नई आशा से काम पर चले गए, उसी दायरें उसी परिधि में चक्कर लगाया और शाम को वापिस आ गए। किसी दिन भी न तो वे कोई नई बात सोचते हैं और न किसी नवीनता का पुट प्रकट करते हैं। कार्य करने की यह रुचि और यह पद्धति घोर मानसिक जड़ता की सूचक है।

ऐसी मानसिक जड़ता के रोगी व्यक्ति ही समाज में स्थगन, अरुचिता तथा अपरूपता को प्रश्रय देने वाले होते हैं। ऐसे ही व्यक्तियों को देखकर अन्य लोग किसी समाज की सभ्यता, असभ्यता, उन्नति तथा असमानता एवं विषमता का अंदाजा लगाते हैं और उसी के अनुसार उसका महत्त्व एवं मूल्यांकन करते हैं। पुरुषार्थी, परिश्रमी तथा कल्पनाशील व्यक्ति समाज में जितने सौंदर्य का अभिवर्धन करते हैं, उसे उस प्रकार के मानसिक जड़ लोग घटा देते हैं। समाज की अवमानना का दोष बहुत कुछ ऐसे ही जीवित मृत लोगों पर रक्खा जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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